लवलिना का मेडल वाला पंच:पहली बार ओलिंपिक में उतरीं लवलिना ब्रॉन्ज लेकर लौटेंगी

Kailash
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पहली बार ओलिंपिक खेल रहीं 23 साल की भारतीय महिला बॉक्सर लवलिना बोरगोहेन ने सेमीफाइनल मुकाबला हारने के बावजूद इतिहास लिख दिया। वो ब्रॉन्ज लेकर ही भारत लौटेंगी। ऐसा करने वाली वो दूसरी महिला बॉक्सर हैं, इससे पहले 2012 में मेरीकॉम ने ब्रॉन्ज जीता था।


69 KG वेट कैटेगरी के इस मुकाबले में लवलिना वर्ल्ड नंबर वन तुर्की की बुसेनाज सुरमेली के खिलाफ लड़ रही थीं। उम्र और अनुभव का अंतर साफ नजर आया, पर बुसेनाज को लड़खड़ा देने वाले लवलिना के कुछ मुक्कों ने बता दिया कि अगली बार के लिए उम्मीदें सुनहरी हैं।


लवलिना ने कहा- मुझे सोना चाहिए, यही सोचा था


सेमीफाइनल मुकाबले के बाद लवलिना ने कहा- मेडल जीतने की खुशी है। जितना सोचा था, उतना नहीं हासिल कर पाई। प्रिपरेशन की बात करें तो प्रॉब्लम हुई थी। यही सोचकर तैयारी की थी कि मुझे सोना चाहिए। हम लोगों को कोविड की वजह से इतनी अच्छी ट्रेनिंग नहीं मिल रही थी। पुणे में ट्रेनिंग की। लड़कों के साथ भी लड़ाई लड़ते थे।


मोदी ने लवलिना से फोन पर बात की


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रॉन्ज जीतने पर लवलिना को बधाई दी है। उन्होंने फोन पर भारतीय बॉक्सर से बात की और कहा कि उनकी जीत योग्यता का प्रमाण है और ये नारी शक्ति की दृढ़ता को दिखाती है। मोदी ने कहा कि लवलिना की सफलता ने हर भारतीय को गर्व से भर दिया है, खासतौर से असम और नॉर्थ ईस्ट को।


कभी डाइट के लिए भी संघर्ष करती थीं

लवलिना ओलिंपिक में भाग लेने वाली असम की पहली महिला खिलाड़ी भी हैं। वे असम के गोलाघाट जिले की रहने वाली हैं। लवलिना बॉक्सिंग में आने से पहले किक बॉक्सिंग करती थीं। वे किक बॉक्सिंग में नेशनल लेवल पर मेडल जीत चुकी हैं। लवलिना ने अपनी जुड़वा बहनों लीचा और लीमा को देखकर किक बॉक्सिंग करना शुरू किया था और अब इतिहास रच दिया है।


स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के असम रीजनल सेंटर में सिलेक्शन होने के बाद वे बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेने लगी थीं। उनकी दोनों बहनें भी किक बॉक्सिंग में नेशनल स्तर पर मेडल जीत चुकी हैं। लवलिना को बचपन में काफी संघर्ष करना पड़ा। उनके पिता टिकेन बोरगोहेन की छोटी सी दुकान थी। शुरुआती दौर में लवलिना के पास ट्रैकसूट तक नहीं था। इक्विपमेंट और डाइट के लिए संघर्ष करना पड़ता था।

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