जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने ली समाधि, जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज समाधिस्थ: जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं

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जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ने शनिवार रात 2.30 बजे देह त्याग दी थी। आज दोपहर उनका अंतिम संस्कार किया गया। आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। उस दिन शरद पूर्णिमा थी। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था।


22 साल की उम्र में घर, परिवार छोड़ उन्होंने मुनि दीक्षा ली थी। दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था। उन्होंने शुरुआत से ही कठिन तप में खुद को लगा दिया। उन्होंने दूध, दही, हरी सब्जियां और सूखे मेवों का अपने संन्यास के साथ ही त्याग कर दिया था। संन्यास के बाद उन्होंने कभी ये चीजें ग्रहण नहीं की। पानी भी दिन में सिर्फ एक बार अपनी अंजुलि से भर कर पीते थे। बार-बार पानी नहीं पीते थे। वे फलों के रस का सेवन करते थे। उन्होंने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया।


## संत श्री विद्यासागर जी: एक प्रेरणादायी जीवन


**कर्नाटक में जन्म, राजस्थान में दीक्षा**


आचार्य श्री विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में 'विद्याधर' नाम से हुआ था। उनका जन्म शरद पूर्णिमा के पावन दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थीं, जो बाद में आर्यिका समयमति बनीं।


30 जून 1968 को 22 वर्ष की आयु में विद्यासागर जी को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर जी ने दीक्षा दी। आचार्य ज्ञानसागर जी स्वयं आचार्य शांतिसागर जी के शिष्य थे। 22 नवंबर 1972 को ज्ञानसागर जी ने विद्यासागर जी को आचार्य पद प्रदान किया।


**विद्यासागर जी का जीवन: त्याग और समर्पण**


आचार्य विद्यासागर जी ने अपना जीवन त्याग और समर्पण में बिताया। उन्होंने जैन धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे एक महान विद्वान, शिक्षक, और समाज सुधारक थे।


**विद्यासागर जी की शिक्षा और साहित्यिक योगदान**

विद्यासागर जी ने संस्कृत, हिंदी, और जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण जैन ग्रंथों की रचना की, जिनमें 'भगवती सूत्र', 'आचार्य भिक्षु सूत्र', और 'प्रवचनसार' शामिल हैं।


**विद्यासागर जी का सामाजिक योगदान**


आचार्य विद्यासागर जी ने जातिवाद, छुआछूत, और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उन्नति के लिए भी काम किया।


## आचार्य विद्यासागर जी का प्रेरणादायी परिवार


**संन्यास का मार्ग अपनाने वाला परिवार**


आचार्य विद्यासागर जी का पूरा परिवार संन्यास का मार्ग अपना चुका है। उनके बड़े भाई, मुनि उत्कृष्ट सागर जी, अभी भी जीवित हैं। उनके माता-पिता और अन्य भाई-बहन भी संन्यास ग्रहण कर चुके हैं।


**विद्यासागर जी के भाई:**


* अनंतनाथ - मुनि योगसागर जी

* शांतिनाथ - मुनि समयसागर जी


**माता-पिता:**


* श्री मल्लप्पा - मुनि मल्लिसागर जी

* श्रीमंती - आर्यिका समयमति जी


**बहुभाषी विद्वान:**


आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, मराठी, और कन्नड़ भाषाओं में विशेषज्ञ थे। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में कई रचनाएं लिखीं। 100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्यों पर मास्टर्स और डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की है।


**विद्यासागर जी की रचनाएं:**


* निरंजना शतक

* भावना शतक

* परीषह जाया शतक

* सुनीति शतक

* शरमाना शतक

* काव्य मूक माटी


**विद्यासागर जी पर आधारित रचनाएं:**


* आत्मान्वेषी (जीवनी) - मुनि क्षमासागर जी

* अनासक्त महायोगी (काव्य) - मुनि प्रणम्यसागर जी


**विद्यासागर जी का प्रभाव:**


आचार्य विद्यासागर जी का जीवन त्याग, समर्पण, और ज्ञान का प्रतीक है। उन्होंने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार और समाज सुधार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज भी, उनके विचार और कार्य प्रा

संगिक हैं और हमें प्रेरित करते हैं.

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