Bajrang Punia: 'मैं अपना पद्मश्री प्रधानमंत्री जी को वापस लौटा रहा हूं', बृजभूषण के करीबी के WFI अध्यक्ष बनने पर बजरंग का फैसला

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 पहलवान बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री अवार्ड सरकार को वापस करने की घोषणा की है। उन्होंने ट्वीट किया- मैं अपना पद्मश्री पुरस्कार प्रधानमंत्री को लौटा रहा हूं...।" बजरंग ने प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में इसकी घोषणा की है। बता दें, इससे पहले साक्षी मलिक ने रेसलिंग से संन्यास लेने की घोषणा की थी। वह रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया का नया अध्यक्ष संजय सिंह को बनाए जाने से नाराज थीं।


उन्होंने लिखा कि माननीय प्रधानमंत्री जी, उम्मीद है आप स्वस्थ होंगे। आप देश की सेवा में व्यस्त होंगे। आपकी इस भारी व्यस्तता के बीच आपका ध्यान हमारी कुश्ती पर दिलवाना चाहता हूं। आपको पता होगा कि इसी साल जनवरी महीने में देश की महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण शरण सिंह पर सेक्सुअल हरासमेंट के गंभीर आरोप लगाए थे, जब उन महिला पहलवानों ने अपना आंदोलन शुरू किया तो मैं भी उसमें शामिल हो गया।


बृजभूषण पर कोई कार्रवाई नहींः बजरंग

उन्होंने लिखा कि आंदोलित पहलवान जनवरी में अपने घर लौट गए, जब उन्हें सरकार ने ठोस कार्रवाई की बात कही। लेकिन तीन महीने बीतने के बाद भी बृजभूषण पर एफआईआर तक नहीं की। तब हम पहलवानों ने अप्रैल महीने में दोबारा सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया ताकि दिल्ली पुलिस कम से कम बृजभूषण सिंह पर एफआईआर दर्ज करे, लेकिन फिर भी बात नहीं बनी, तो हमें कोर्ट में जाकर एफआईआर करवानी पड़ी।


बृजभूषण ने 12 पहलवानों को पीछे हटा दिया

जनवरी में शिकायतकर्ता महिला पहलवानों की गिनती 19 थी जो अप्रैल आते-आते 7 रह गई थी। यानी इन तीन महीनों में अपनी ताकत के दम पर बृजभूषण सिंह ने 12 महिला पहलवानों को अपने न्याय की लड़ाई में पीछे हटा दिया था। आंदोलन 40 दिन चला। इन 40 दिनों में एक महिला पहलवान और पीछे हट गईं। हम सब पर बहुत दबाव आ रहा था।


मेडल गंगा में बहाने की सोचीः बजरंग

उन्होंने लिखा कि हमारे प्रदर्शन स्थल को तहस-नहस कर दिया गया और हमें दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया गया और हमारे प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी। जब ऐसा हुआ तो हमें कछ समझ नहीं आया कि हम क्या करें। इसलिए हमने अपने मेडल गंगा में बहाने की सोची।


साक्षी ने रोते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़ा

पहलवान साक्षी मलिक ने कहा था कि हम 40 दिनों तक सड़कों पर सोए और देश के कई हिस्सों से बहुत सारे लोग हमारा समर्थन करने आए। अगर बृजभूषण सिंह के बिजनेस पार्टनर और करीबी सहयोगी इस फेडरेशन में रहेगा, तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूं... हमारी लड़ाई जारी रहेगी।" इस दौरान साक्षी मलिक भावुक दिखीं और रोते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस को बीच में छोड़ दिया। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़ने से पहले सरकार और भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव पर जमकर अपनी भड़ास निकाली।


'मंत्री ने बताया कि हमारे साथ न्याय होगा'

उन्होंने लिखा कि सी समय आपके एक जिम्मेदार मंत्री का फोन आया और हमें कहा गया कि हम वापस आ जाएं, हमारे साथ न्याय होगा। इसी बीच हमारे गृहमंत्री जी से भी हमारी मुलाकात हुई, जिसमें उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वे महिला पहलवानों के लिए न्याय में उनका साथ देंगे और कुश्ती फेडरेशन बृजभूषण, उसके परिवार और उसके गुर्गों को बाहर करेंगे। हमने उनकी बात मानकर सड़कों से अपना आंदोलन समाप्त कर दिया, क्योंकि कुश्ती संघ का हल सरकार कर देगी और न्याय की लड़ाई न्यायालय में लड़ी जाएगी, ये दो बातें हमें तर्कसंगत लगी। 


'मानसिक दबाव में साक्षी ने लिया संन्यास'

बीती 21 दिसंबर को हुए कुश्ती संघ के चुनाव में बृजभूषण एक बार दोबारा काबिज हो गया है। उसने बयान दिया कि दबदबा है और दबदबा रहेगा। महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोपी सरेआम दोबारा कुश्ती का प्रबंधन करने वाली इकाई पर अपना दबदबा होने का दावा कर रहा था। इसी मानसिक दबाव में आकर ओलंपिक पदक विजेता एकमात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से सन्यास ले लिया।


'सम्मान के बोझ के तले दबकर घुटता रहा'

उन्होंने लिखा कि इसके बाद हम सभी की रात रोते हुए निकली। समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जीएं। इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने। क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटता रहूं। साल 2019 में मुझे पद्मश्री से नवाजा गया। खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। जब ये सम्मान मिले तो मैं बहुत खुश हुआ। लगा था कि जीवन सफल हो गया, लेकिन आज उससे कहीं ज्यादा दुखी हूं और ये सम्मान मुझे कचोट रहे हैं। कारण सिर्फ एक ही है, जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले उसमें हमारी साथ महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है।


'खेल महिला खिलाड़ियों के जीवन में लाया बदलाव'

उन्होंने लिखा कि खेल हमारी महिला खिलाड़ियों के जीवन में जबरदस्त बदलाव लेकर आए थे। पहले देहात में यह कल्पना नहीं कर सकता था कि देहाती मैदानों में लड़के-लड़कियां एक साथ खेलते दिखेंगे। लेकिन पहली पीढ़ी की महिला खिलाड़ियों की हिम्मत के कारण ऐसा हो सका। हर गांव में आपको लड़कियां खेलती दिख जाएंगी और वे खेलने के लिए देश विदेश तक जा रही हैं। लेकिन जिनका दबदबा कायम हुआ है या रहेगा, उनकी परछाई तक महिला खिलाड़ियों को डराती है और अब तो वे पूरी तरह दोबारा काबिज हो गए हैं। उनके गले में फूल-मालाओं वाली फोटो आप तक पहुंची होगी। 


बेटियों को पीछे हटना पड़ा: बजरंग

जिन बेटियों को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की ब्रांड अंबेसडर बनना था,उनको इस हाल में पहुंचा दिया गया कि उनको अपने खेल से ही पीछे हटना पड़ा। हम 'सम्मानित' पहलवान कुछ नहीं कर सके। महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं 'सम्मानित' बनकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाउंगा। ऐसी जिंदगी कचोटेगी ताउम्र मुझे, इसलिए ये 'सम्मान' मैं आपको लौटा रहा हूं।

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