नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा- गोरखा सैनिकों पर 1947 का समझौता अब पुराना और बेकार हुआ, ब्रिटेन और भारत इस पर चर्चा करें

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नेपाल ने अब भारत के सामने गोरखा सैनिकों का मामला उठा दिया है। इस बार उसने ब्रिटेन को भी घेरे में लिया है। नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा- गोरखा सैनिकों को लेकर हुआ समझौता अब काफी पुराना और बेकार हो गया है। नेपाल इसकी समीक्षा करेगा। भारत और ब्रिटेन को भी इस मामले में हमसे चर्चा करनी चाहिए, क्योंकि 1947 में यह समझौता इन्हीं तीन देशों के बीच हुआ था।




काठमांडू में एक कार्यक्रम के दौरान ग्यावली ने कहा, “भारतीय सेना में गोरखाओं की भर्ती गुजरे जमाने और विरासत की बात है। इसके कई पहलू हैं। इसने नेपाल के युवाओं के लिए विदेश जाने का रास्ता खोला। उस वक्त इससे रोजगार मिलता था। मौजूदा वक्त में इसके कई प्रावधानों पर सवाल उठ रहेे हैं। ऐसे में हमें विवादास्पद पहलुओं पर चर्चा करनी चाहिए।
नेपाल के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन के सामने उठाया था मुद्दा
ग्यावली ने कहा- हमारे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने ब्रिटेन के सामने भी यह मुद्दा उठाया था। पिछले साल ब्रिटेन दौरे पर उन्होंने वहां की उस वक्त की प्रधानमंत्री थेरेसा मे से इस पर बात की थी। उन्होंने गोरखा सैनिक समझौता समेत भारत और ब्रिटेन के दूसरे समझौतों पर चर्चा की थी।
रिटायर गोरखा सैनिकों ने समझौते में भेदभाव की बात कही
1947 में नेपाल, भारत और ब्रिटेन के बीच हुए समझौते के मुताबिक, गोरखा सैनिकों के भत्ते, वेतन पेंशन और दूसरी सुविधाएं ब्रिटेन और भारतीय सेना के समान होंगी। हालांकि, भारतीय सेना में सेवा दे चुके गोरखा सैनिकों ने समझौते को भेदभाव वाला बताया है।
भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ने का पूरे एशिया पर असर होगा: ग्यावली




नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा कि वुहान समिट के बाद भारत-चीन के बीच साझेदारी मजबूत हुई थी। लेकिन, गलवान झड़प के बाद तनाव बढ़ गया। इसका असर पूरे एशिया पर होगा। कम से कम इस क्षेत्र का भविष्य इसी से तय होगा। दोनों देश लद्दाख में तनाव कम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, वहां अब भी चुनौतियां हैं।
‘भारत ने नक्शे पर चर्चा करने के हमारे प्रस्ताव को टाला’
उन्होंने कहा कि नवंबर 2019 में भारत ने अपना नया नक्शा जारी किया। इसमें नेपाल के कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपना इलाका बताया। नेपाल ने डिप्लोमेटिक नोट और राजनीतिक बयानों से इसका विरोध किया। इसके बाद हमने भारतीय दोस्तों को कूटनीतिक चर्चा से मुद्दे को सुलझाने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, कोरोना का बहाना देकर वे इसे टालते रहे। इसके बाद हमें भी संविधान में संशोधन कर अपना नया नक्शा जारी करना पड़ा।
अप्रैल 1815 में भारतीय सेना में बनी थी गोरखा रेजीमेंट
गोरखा रेजीमेंट इंडियन आर्मी से अप्रैल 1815 में जुड़ी थी। तब से आज तक कई लड़ाइयों में इंडियन आर्मी के साथ मजबूती से साथ निभाती आ रही है। नेपाल, ब्रिटेन और भारत की सेना में गोरखा रेजीमेंट हैं। भारत में गोरखा रेजीमेंट ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात रहती है। गोरखा सैनिकों के लिए नेपाल में भारत के तीन केंद्र हैं। फिलहाल 30 हजार गोरखा सैनिक भारतीय सेना में शामिल हैं। हर साल भारत गोरखा सैनिकों की पेंशन के तौर पर नेपाल को 3000 करोड़ रु. देता है।

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