जानें, कब है शीतला अष्टमी कैसा है शीतला माता का स्वरूप? शीतला सप्तमी और अष्टमी पर ठंडा खाना क्यों खाते हैं?

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 गुरुवार (24 मार्च) और शुक्रवार (25 मार्च) को चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि है। इन तिथियों पर शीतला माता की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में सप्तमी पर और कुछ क्षेत्रों में अष्टमी तिथि पर महिलाएं ये व्रत करती हैं। शीतला माता के नाम का अर्थ ही है शीतला यानी शीतलता देने वाली मां। शीतलता यानी ठंडक। इस व्रत में देवी मां को शीतल यानी ठंडे खाना खाने का भोग लगाते हैं और भक्त ठंडा खाना ही खाते हैं।



शीतला माता करती हैं गधे की सवारी


शीतला माता का स्वरूप अन्य देवियों से एकदम अलग है। देवी मां गधे की सवारी करती हैं। शीतला माता के हाथों में कलश, झाड़ू, सूप यानी सूपड़ा रहता है। देवी मां नीम के पत्तों से बनी माला धारण करती हैं। कलश, झाड़ू, सूप और नीम ये सभी चीजें साफ-सफाई से संबंधित हैं। देवी का संदेश यही है कि व्यक्ति हर स्थिति में साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। जो लोग गंदगी में रहते हैं, खुद के शरीर की सफाई नहीं करते हैं, उन्हें मौसमी बीमारियां बहुत जल्दी होने की संभावनाएं रहती हैं। नीम हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। नीम के सेवन से हमारे स्वास्थ्य को कई लाभ मिलते हैं, लेकिन ध्यान रखें नीम का उपयोग किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श करने के बाद ही करना चाहिए।


शीतला माता को क्यों लगाते हैं ठंडे खाने का भोग?


शीतला सप्तमी-अष्टमी दो ऋतुओं के संधिकाल में आती है। अभी शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है, इसे ही संधिकाल कहा जाता है। ऋतुओं के संधिकाल में स्वास्थ्य संबंधित सावधानी न रखी जाए तो मौसम बहुत जल्दी हमें बीमार कर सकता है। इस समय खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इन दो दिनों में शीतला माता के लिए व्रत किया जाता है। ये व्रत करने वाले भक्त बासी यानी ठंडा खाना ही खाते हैं। शीतला माता को ठंडे खाने का ही भोग लगाते हैं। ये व्रत करने वाले लोग शीतला माता के प्रसाद के रूप में ठंडा खाना ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस समय में ठंडा खाना खाने से उन्हें ऋतु परिवर्तन से होनी वाली मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-कफ, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित और त्वचा संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।


ये है शीतला माता से जुड़ी कथा


ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में एक दिन किसी गांव के लोगों ने देवी मां को गर्म खाने का भोग लगा दिया था, जिससे देवी मां का मुंह जल गया और वह क्रोधित हो गई थीं। देवी के क्रोध से गांव में आग लग गई, लेकिन एक बूढ़ी औरत का घर आग से बच गया। अगले दिन गांव के लोगों को बूढ़ी औरत ने बताया कि उसने शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाया था। तभी से शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई है।

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